भारत में लॉकडाउन के बावजूद अब तक दस हज़ार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।
इतने दिन के अनुभव के बाद भारत सरकार ये समझ चुकी है कि कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए प्रभावित इलाकों की पहचान कर उन पर काम करना होगा।
इसके लिए सरकार ने पहले हॉटस्पॉट की पहचान की और अब उससे भी आगे बढ़कर जिला स्तर पर कंटेनमेंट प्लान लेकर आई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के मुताबिक अब तक देश के 274 जिलों में कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं।
क्या है कंटेनमेंट प्लान?
इसमें पहले स्थानीय स्तर पर उस इलाके की पहचान की जाएगी जहां एक साथ बहुत सारे कोरोना के मामले सामने आए हैं।
ये कोई गांव, कस्बा या शहर हो सकता है। जहां पहले एक छोटा सा क्लस्टर मिला था, पर अब कई क्लस्टर बन गए हैं। फिर कंटेनमेंट और बफर जोन तय किया जाएगा।
प्लान के तहत मरीजों की कॉन्टेक्ट लिस्टिंग, ट्रैकिंग और उनका फॉलोअप होगा। मरीजों से संपर्क में आए लोगों की कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की जाएगी।
एरिया को कम से कम 28 दिनों के लिए सील किया जाएगा। कंटेनमेंट जोन के सभी निवासीयों का होम क्वारंटाइन में रहना होगा।कंटेनमेंट जोन यानी वो जिले जहां कोरोना के मामले ज्यादा मिले हैं और बफर जोन यानी उन प्रभावित जिलों या ग्रामीण जिलों से लगने वाले ब्लॉक।
दोनों के एंट्री और एक्जिट प्वाइंट तय किए जाएंगे। आसान भाषा में कहा जाए तो इस पूरे इलाके को ही क्वारंटाइन कर दिया जाएगा।
कोरोना से निपटने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए प्लान पर बीबीसी ने बात की हरियाणा के नोडल अफसर से। हरियाणा के नोडल अफसर ध्रुव चौधरी ने बीबीसी से कहा,
“इस कंटेनमेंट प्लान से कितना फायदा हो सकता है, ये आप चीन के वुहान और इटली के बाकी हिस्सों को देखकर समझ सकते हैं। किसी महामारी को रोकने का ये सबसे अच्छा तरीका है। हम कोशिश कर रहे हैं कि इस तरीके से आम लोगों को दिक्कत ना हों।
लेकिन ये भी समझना होगा कि ‘नो पेन, नो गेन’। कोई सरकार अपने लोगों को तंग करना नहीं चाहती, खासकर लोकतांत्रिक देश में तो बिल्कुल नहीं। लेकिन इस स्थिति में ये करना बहुत जरूरी है। हम राज्यों में कोशिश कर रहे हैं कि जिन लोगों में वायरस मिला है, उन्हें अलग-थलग किया जाए और उनके कॉन्टेक्ट को भी ट्रेस किया जाए। और कंटेनमेंट प्लान को लागू करने में हम किसी तरह की ढिलाई नहीं बरत रहे हैं। हमें उम्मीद है कि कंटेनमेंट प्लान से हम नए मामलों को बनने से भी रोक देंगे।”
हॉस्पिटल केयर
अस्पताल से भार कम करने के लिए तीन स्तर पर व्यवस्था की गई है। माइल्ड केसों को अस्थायी मेकशिफ्ट हॉस्पिटल फैसिलिटी में रखा जाएगा। जो कोविड-19 हॉस्पिटलों के नजदीक स्थित होटलों, हॉस्टलों, स्टेडियम, गेस्ट हाउस को बदलकर करके बनाए गए हैं।
कोविड के लिए डेडिकेटेड अस्पताल या बड़े अस्पतालों में ब्लॉक बनाए जाएंगे। मॉडरेट से गंभीर स्थिति वाले मरीजों को अस्पतालों में भर्ती किया जाएगा। कुछ गंभीर मामलों में रेस्पिरेटरी फेलियर और/या मल्टी ऑर्गन फेलियर हो सकता है, जिसके लिए क्रिटिकल केयर की जरूरत होगी। अगर कंटेनमेंट जोन में ये सुविधा नहीं है तो जोन के नजदीकी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल की पहचान करनी होगी।
सरकार के इस प्लान पर बीबीसी ने डॉक्टर से बात की। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन के चेयरमैन डॉ एस पी बयोत्रा ने बताया,
इस वक्त ये करना बहुत जरूरी है। शुरुआती तौर पर पूरे देश में लॉकडाउन किया गया।
इतने दिनों में पता चल चुका है कि किन इलाकों में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं। जैसे दिल्ली के निजामुद्दीन का उदाहरण देखा जाए। वहां इतने सारे लोग पॉजिटिव मिले।
इन लोगों ने दूसरे राज्यों में जाकर भी कोरोना फैला दिया। इस तरह कोरोना के कम्युनिटी लेवल पर फैलने का डर है। यूरोप, अमेरिका में स्थिति ऐसे ही बिगड़ी।इसलिए जरूरी है कि भारत वक्त रहते कदम उठाए और ऐसे इलाकों की पहचान कर उन्हें आइसोलेट करे और इस कंटेनमेंट प्लान से यही किया जा रहा है। इससे इलाकों को अलग-थलग कर क्वारंटाइन किया जा रहा है।
इस तरह ये बीमारी तीन से चार हफ्ते में काबू में आ सकती है। ये सबसे कारगर तरीका है कि जिन इलाकों में मामले सामने आए उन्हें वहीं रोक दो, ताकि वो आगे कम्युनिटी में वायरस ना फैलाएं।”
मामले बहुत ज्यादा बढ़ गए तो…
अगर कंटेनमेंट जोन में मामले बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं तो चिन्हित अस्पतालों की क्षमता बढ़ाई जाएगी। प्राइवेट अस्पतालों की भी मदद ली जाएगी और जगह चिन्हित कर बनाए गए अस्थायी अस्पतालों में भी काम शुरू किया जाएगा। टेस्टिंग की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी।
इन कंटेनमेंट जोन के लिए विशेष टेस्ट की तैयारी भी है। जिन्हें रैपिड एंटी बॉडी बेस ब्लड टेस्ट कहा जाता है। अगर एक वक्त पर ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की जरूरत पड़ती है, तो इस टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है।आईसीएमआर ने जरूरत पड़ने पर राज्य सरकारों को ऐसे ख़ास टेस्ट करने की एडवाइजरी जारी की है।
कबतक चलेगा कंटेनमेंट प्लान
अगर आखिरी पॉजिटिव मरीज मिलने के कम से कम चार हफ्ते बाद तक किसी नए मामले की पुष्टि नहीं होती तो अभियान को धीमा कर दिया जाएगा।
आख़िरी संक्रमित मरीज के डिस्चार्ज होने के बाद 28 दिन में कंटेनमेंट ऑपरेशन खत्म कर दिया जाएगा।हालांकि अगर कंटेनमेंट प्लान काम नहीं करता और मामले बढ़ने का सिलसिला जारी रहता है तो राज्य प्रशासन इसे ख़त्म करने पर फैसला लेगा और दूसरे कदम उठाएगा।
रणनीति पर सामूहिक चर्चा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के मुताबिक रविवार को कोविड से संबंधित कैबिनेट सेकेट्री ने सभी जिलो के डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट, सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस, चीफ मेडिकल ऑफिसर, स्टेट सर्विलांस और डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस ऑफिसर, स्टेट हेल्थ सेक्रेटरी और चीफ सेक्रेटरी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए समीक्षा की और कंटेनमेंट रणनीति पर चर्चा की।
यहां के अधिकारियों ने अपने इलाके में लागू की गई रणनीति के बारे में बताया कि कैसे उन्होंने कंटेनमेंट जोन और बफर जोन को मैनेज किया
कैसे उन्होंने स्पेशल टीम से बफर जोन और कंटेनमेंट जोन में आने वाले घरों का डूर टू डूर सर्वे करवाया और कॉल सेंटर के जरिए कैसे आने वाले यात्रियों को वो मॉनिटर कर रहे हैं, किस तरह से रिंग फेंसिंग करते हुए हाई रिस्क आबादी को मॉनिटर किया जा रहा है।
इस कॉन्फ्रेंस में भीलवाड़ा, आगरा, गौतमबुद्ध नगर, पथानामथिट्टा जिलों के अधिकारियों और पूर्वी दिल्ली के कलेक्टर्स और मुंबई के म्युनिसिपलिटी कमिशनर ने अपने अनुभव साझा किए।
इन इलाकों में पहले ज्यादा मामले सामने आए हैं।केबिनेट सेक्रेटरी ने खासतौर पर सभी डीएम से अपील की कि कोविड के रिस्पॉन्स में यूनिफॉर्मिटी बने रहना बहुत जरूरी है और इसके लिए सभी जिलों में कोविड-19 के लिए क्राइसिस मैनेजमेंट प्लान बनाया जाए।